वीडियो जानकारी: पार से उपहार शिविर, 10.01.2020, ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश, भारत <br /><br />प्रसंग:<br />विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः ।<br />रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्टवा निवर्तते ॥<br />भावार्थ : इन्द्रियों द्वारा विषयों को ग्रहण न करने वाले पुरुष के भी केवल विषय तो निवृत्त हो जाते हैं, परन्तु उनमें रहने वाली आसक्ति निवृत्त नहीं होती। इस स्थितप्रज्ञ पुरुष की तो आसक्ति भी परमात्मा का साक्षात्कार करके निवृत्त हो जाती है। <br /><br />~श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय २ श्लोक ५९) <br /><br />यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः । <br />इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः ॥<br />भावार्थ : हे अर्जुन! आसक्ति का नाश न होने के कारण ये प्रमथन स्वभाव वाली इन्द्रियाँ यत्न करते हुए बुद्धिमान पुरुष के मन को भी बलात् हर लेती हैं। <br /><br />~श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय २ श्लोक ६०) <br /><br />~ हमारी साधना कैसी होनी चाहिए कि हम इन्द्रियों के बस में ना रहें और सत्य के रास्ते पर आगे बढ़ सकें? <br />~ विषयों से अपने आप को कैसे बचाएँ?<br />~ फिसलने से कैसे बचें?<br />~ अभ्यास और वैराग्य से साधना में आगे कैसे बढ़ें?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते<br />~~~~~